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सोमवार, 1 सितंबर 2014

1975 - 1977 इमरजेंसी का सच .....!


अब उस इमरजेंसी की बात करते हैं जिसे इंदिरा गाँधी ने भारत में घोषित कर दिया था!
 
इसका कारण कुछ और ही था! हुआ ये कि 12 जून 1975, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पाया कि इंदिरा गाँधी ने अपने चुनाव अभियान के दोरान सरकारी मशीनरी का जमकर दुरूपयोग किया था और इसके लिए उसे दोषी करार दे दिया गया! उच्च न्यायालय ने इंदिरा गाँधी के उस चुनाव को अवैद घोषित कर दिया और इंदिरा को लोक-सभा की सीट से हटा दिया ! यही नहीं अदालत ने इंदिरा गाँधी को 6 साल तक कोई भी चुनाव लड़ने पर प्रतिबंद लगा दिया! उधर जी पी की अगुवायी में देश ने
एक अंगडाई लेली थी! कोंग्रेसियों को लगा कि विपक्ष के तेवर सरकार के खिलाफ साजिश है! इंदिरा को लगा कि अदालत का फैसला उनके खिलाफ साजिश है और विपक्ष को लगा कि इंदिरा कि नीतियाँ देश के खिलाफ साजिश हैं! 25 और 26 जून 1975 की रात देश पर इमरजेंसी थोप दी गयी! इससे ठीक पहले इंदिरा ने किसी को भी भरोसे में नहीं लिया! न ही संसद में इस पर चर्चा हुई और न ही केबिनेट की मीटिंग में इसका उल्लेख हुआ! इंदिरा गाँधी ने इमरजेंसी लगाने से पहले भारतीय संविधान को ताक पर रख दिया! केबिनेट उनसे अनजान थी, यहाँ तक की तत्कालीन राष्ट्रपति फखरूदीन अली अहमद को भी धोखे में रखकर उनसे हस्ताक्षर ले लिए गए! कानून ये कहता है कि पहले केबिनेट डिसीज़न हो, फिर राष्ट्रपति देश में आपातकालीन लागु कर सकता है! लेकिन इस औरत ने राष्ट्रपति से मिलकर उन्हें समझाया और उन्हें इस बात पर मना लिया कि आप दस्तखत कर दीजिये, केबिनेट को सुबह मना लेंगे, जोकि पूरी तरह गैर-क़ानूनी था!
देश में इमरजेंसी होते ही सभी बड़े बड़े नेताओं को जहाँ थे, वहीँ से गिरफ्तार कर लिया गया! मिडिया कि स्वतंत्रता भी जाती रही! अख़बारों में सिर्फ सरकारी घोषणाओं को छापने का दबाव था!
धर-पकड़ और आरोपी बनाने का ऐसा सिलसिला चला, कि आम लोग तो क्या अदालतें भी स्तब्द रह गयी!
इनकी बेशर्मी देखिये,
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एक प्रोफेस्सर रघुवंस थे, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया! आरोप लगाया गया कि वो रेल की पटरियां तोड़ रहे थे! जब उनको कोर्ट में पेश किया गया तो देखा गया कि वो तो दोनों हाथों से अपंग थे, वो रेल कि पटरी को छू भी नहीं सकते थे, उखाड़ना तो दूर की बात है!
पटना में तपेश्वर गाँधी को पकड़ा गया! आरोप लगे गया कि नोबतपुर में रेलवे पटरियां उखाड़ रहे थे और इंदिरा गाँधी के नाम पर मुर्दाबाद के नारे लगा रहे थे! कमाल की बात देखिये,इस पर अदालत में तपेश्वर जी बोले कि साब बड़ा अच्छा होता अगर मैं नोबतपुर में रेलवे की पटरी उखाड़ पता, क्यूंकि नोबतपुर में तो रेलवे लाइन ही नहीं थी उस समय तक!

बरेली के एक कार्यकर्ता वीरेंदर (पक्का नहीं पता नाम का) के उँगलियों के नाखून उखड दिए गए! वाराणसी में जवाहर प्रसाद नाम के कार्यकर्ता पर कुत्ते छोड़ दिए गए थे! मकसद सिर्फ ये था कि बाकी के कार्यकर्ताओं के नाम बताओ और बताओ कि वो सब कहाँ छुपे हुए हैं!

एक कार्यकर्ता पर आरोप लगा कि भारत माता कि जय और इंदिरा गाँधी मुर्दाबाद के नारे लगा रहा था, जबकि वो कार्यकर्ता गूंगा था!



25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक 21 महीनों तक देश ने इमरजेंसी का दंश झेला!





बदलते वक़्त के साथ लोकतंत्र ने फिर करवट ली और लोगों ने बता दिया कि हिन्दुस्तान में लोकतंत्र की जडें कितनी गहरी हैं! संसद में कोंग्रेस के सदस्यों की संख्या 350 से घटकर 153 रह गयी! कोंग्रेस को उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरयाणा, दिल्ली और बिहार में एक भी सीट नहीं मिली! खुद इंदिरा गाँधी रायबरेली और उसका बेटा संजय अमेठी से चुनाव हार गए ! जनता पार्टी कि अगुवाई में बनी नयी सरकार ने आपातकाल के दोरान लिए फैसलों की जाँच के लिए एक आयोग गठित कर दिया!

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